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हमारी प्रेरणा

राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिराव फुले

माता का नाम: – चिमणा बाई फूले
पिता का नाम: – गोविन्द राव फूले
महापरिनिर्वाण: – 28 नवम्बर 1890
जन्म:- 20 फरवरी 1827, पूणे, महाराष्ट्र
मौत:- विक्रमी संवत १५५१ (सन १४९४ ई ० ) मगहर, (हाल में उत्तर प्रदेश, भारत)

विद्या बिना मति गई,
मति बिना गति गई,
गति बिना नीति गई,
नीति बिना वित्त गई।
वित्त बिना शूद्र चरमराये।
इतना सारा अनर्थ एक अविद्या से हुआ।
-गुलामगिरी, ज्योतिबा फुले


जीवन परिचय

महामानव ज्योतिबा राव फूले का जन्म 20 फरवरी 1827 को महाराष्ट्र के पुणे में एक माली (शूद्र) परिवार में हुआ था, जिनका पूणे में फूलों का व्यवसाय था। एक वर्ष की अल्पायु में ही बालक ज्योतिबा की माता चिमड़ाबाई का निधन हो गया था। उनका लालन-पालन उनके पिता की मुँह बोली बहन द्वारा हुआ था।

ज्योतिबा राव फुले के जीवन क्रम की घटनाओं और उनके सामाजिक परिवर्तन के लिए किए गए आंदोलन को निम्नानुसार रेखांकित किया जा सकता है-

1848 - अपनी पत्नी सावित्रीबाई तथा उनकी सहपाठी/मित्र फातिमा शेख के सहयोग से भारत में शूद्र अति शूद्र लड़कियों की शिक्षा के लिए पहला स्कूल स्थापित किया जाना।,

1851 - सभी जाति की कन्याओं की शिक्षा के लिए एक अन्य स्कूल खोला जाना।

1855 - कामगार लोगों की शिक्षा के लिए रात्रि पाठशाला खोलना।

1856 - सामाजिक परिवर्तन के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के चलते उन पर जानलेवा हमला,

1860 - विधवा पुनर्विवाह की मुहिम। 1863 - विधवाओं के लिए एक आश्रयस्थल की शुरूआत, विधवाओं के केशवपन अर्थात बाल काटे जाने के खिलाफ नाभिकों की हड़ताल का आयोजन,

1868 - अपने घर का कुंआ अस्पृश्यों के लिए खोल देना,

1 जून 1873 - ‘गुलामगिरी’ उनकी बहुचर्चित किताब का प्रकाशन,

24 सितम्बर 1873 - ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना,

1876-82 - पुणे म्युनिसिपल कौन्सिल के नामांकित सदस्य,

1882 - ‘स्त्री पुरूष तुलना’ की लेखिका एवं सत्यशोधक समाज की कार्यकर्ता ताराबाई शिन्दे की जोरदार हिमायत, जब उनकी उपरोक्त किताब ने रूढिवादी तबके में जबरदस्त हंगामा खड़ा कर दिया था।

11 मई 1888 - एक विशाल आमसभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि प्रदान की गयी।

1889 - उनकी आखरी किताब ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ का प्रकाशन,

28 मई 1890 - पुणे में इंतकाल।